
स्कूली दोस्त, संजय
वैसे तो सभी विषयों में ठीक ठाक था पर संस्कृत के नाम पर भाग जाता था ।
इससे जब कहा जाता कि थोड़ा संस्कृत भी पढ़ लो,
तब पटोत्तर सुनाते हुए कहता ..
संस्कृत पढ़ने की जो बात करोगे ..
कापी फाड़ फेंक दूँगा…
कलम तोड़ ..दावात उलट..स्याही तुझे पिला दूंगा
करो शिकायत मास्टर से तो.. फौरन गला दबा दूँगा ..
लेकिन एक खूबी थी उसमें कि जितना भी पढ़ता था दिल से पढ़ता था ..संस्कृत उसे रूचिकर नहीं लगता था तो सहज भाव से उसे स्वीकार करता था| उसे विकृत नही करता था|
लेकिन इतिहास की कक्षा लगते ही उसके चेहरे पर जो रौनक आती थी वह देखने लायक होता था| भूत, वर्तमान के साथ साथ वह कुछ इस कदर इतिहास को व्याख्यायित करता था मानो इन दोनों के सहारे वह भविष्य का सटीक रेखांकन कर रहा हो| इतिहास पढ़ते-पढ़ते वह उससे भी आगे निकलकर अपनी बात को किसी दार्शनिक की तरह बताने लगता था| स्कूल की पढाई पूरी हुई| कॉलेज में इतिहास (आनर्स) से उसने विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया| फिर UPSC परीक्षा में सफलता हासिल की|
एक बात हमेशा मेरे मन में रही कि आखिर क्यों संजय संस्कृत से तो दूर भागता है परन्तु इतिहास में इतनी रूचि दर्शाता है और न सिर्फ रूचि दर्शाता है अपितु सभी को अपने ज्ञान से प्रभावित भी करता है| दूसरी बात जो संजय से पूछने की होती थी वह कि स्कूल में औसत पढाई का छात्र रहा और कॉलेज में ऐसा कौन सा अलादीन का चिराग हाथ लग गया कि विश्वविद्यालय में स्वर्ण पदक मिला उसे| और पढ़ाई समाप्त होते- होते ही उसने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में भी टॉप करके न सिर्फ अपने माता पिता का अपितु अपने समाज का भी नाम रौशन किया|
और इन सबका उत्तर हमें जल्द ही मिल गया| UPSC परीक्षा में सफल होने की खुशी में उसने अपने घर हम सबको खाने पर आमंत्रित किया| उसके बाबा भी आये हुए थे| संजय ने कहा कि तुम्हारे मन में मुझे लेकर जो सवाल हैं उन सब का जवाब मेरे बाबा के पास है|
अच्छा तो हमें मिलवाओ अपने बाबा से- मैंने कहा|
ओके! ओके! आओ, चलो| वह अपने बाबा के पास ले जाकर बोला – बाबा, ये आपसे मिलकर मेरे बारे में कुछ पूछना चाहती है|
प्रणाम बाबा! मैंने बाबा को प्रणाम किया|
खूब खुश रहो|
हाँ बेटी, पूछो क्या पूछना है?
मैंने अपनी जिज्ञासा प्रकट कर दी|
बाबा ने हँसते हुए कहा- इसकी जन्म कुंडली में बुध छठे भाव में है और गुरु( बृहष्पति) वृश्चिक राशि में है जिसकी वजह से यह इतिहास के रहस्यों को तुरंत समझ जाता है|
स्कूल की पढ़ाई के वक्त इसकी दशा चल रही थी षष्ठेश की, जो अष्टम भाव में बैठा था| पंचम पंचमेश से इसका कोई सम्बन्ध नहीं होने की वजह से पढाई में इसकी रूचि नहीं जगी| परन्तु कॉलेज में दाखिले के एक महीने बाद ही इसकी दशा वैसे ग्रह की शुरू हुई जिसका सम्बन्ध पंचम से तो था ही साथ-ही-साथ दशम और एकादश से भी था| यह सम्बन्ध इसकी रूचि पढाई में तो वापस लाया ही, पढ़ाई समाप्त होते- होते अच्छी नौकरी दिलवाने वाला भी रहा|
पंचम भाव, दशम भाव, एकादश भाव/ भावेश का परस्पर सम्बन्ध जिस किसी की कुंडली में भी बना हो और सही समय पर उन योगों से संबंधित ग्रहों की दशा भी मिल जाये तो उन सभी को वैसे ही उत्तम फल प्राप्त होते हैं जैसे की संजय को प्राप्त हुए|
अरे वाह, बाबा ये कुंडली तो सच में अलादीन के चिराग जैसा है|
हाँ बेटी सही समय पर सही मार्गदर्शन मिल जाये तो सबका जीवन संजय की भांति संवर जाये|
बिलकुल सही कहा आपने बाबा |
हाँ, बाबा तो हमेशा सही ही बोलते हैं, संजय ने कमरे में प्रवेश करते हुए कहा| अब चलोगी भोजन ग्रहण करने या अभी और भी कुछ पूछना रह गया है? संजय ने हँसते हुए कहा|
हाँ! हाँ! अभी सबसे जरूरी सवाल तो पूछना रह ही गया है|
पूछो बेटी वह भी पूछ लो- बाबा ने प्यार से कहा|
मैंने हँसते हुए कहा- बाबा अब इसकी नौकरी तो हो गयी| बस अब ये बता दीजिये कि इसकी शादी कब होगी? और क्या यह आपकी पसंद की लड़की से शादी करेगा या खुद ही कोई मेम ढूंढ कर ले आएगा? प्रेम- व्रेम के चक्कर में तो नहीं पड़ेगा?
अरे बाप रे इतने सारे प्रश्न, बाबा ने हँसते हुए कहा| ठीक है अभी जाकर खाना खाओ| फिर आराम से इसपर बात करेंगे…