
“या देवी सर्वभूतेषु पुष्टि रूपेण संस्थिता”
25 मार्च को सूर्योदय के साथ चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो जाएगी |कुछ दिनों पूर्व मैंने अपने आलेख में चैत्र का महीना और स्वर ज्योतिष की चर्चा की थी | उस चर्चा में मैंने इस दिन से तीन दिनों तक चलने वाला स्वर और उसका स्वास्थ्य के ऊपर प्रभाव, इसकी चर्चा की थी |उस चर्चा के कुछ अंशों को यहाँ पुनर्प्रेषित करते हुए आगे और विस्तार से समझते हैं |
- मनुष्य की नासिका में जो दो छिद्र हैं उनमे से एक छिद्र से वायु का प्रवेश और दूसरी छिद्र से वायु का निकास होता है | जब एक छिद्र से वायु का प्रवेश और निकास हो रहा होता है तब दूसरा छिद्र स्वतः ही बंद हो जाता है | वायु के इस आवन और निष्कासन की क्रिया स्वर क्रिया कहलाती है | हम जिसे सांस कहते हैं वही स्वर है |
- हर दिन सूरज के उगने के साथ साथ ही स्वर का उदय भी होता है जो हर ढाई ढाई घड़ी अर्थात एक एक घंटे में बदलता रहता है | एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में पंद्रह बार साँस लेता है अर्थात एक घंटे में 900 बार और 24 घंटे अर्थात एक दिन में 21600 बार साँस लेता है | इससे अधिक सांस लेना या इससे काम सांस लेना जब होता है तो यह रोग का लक्षण है |
- कभी कभी दोनों छिद्रों से एक साथ सांसों का प्रवाह शुरू हो जाता है | दाहिनी नासिका से जब वायु का प्रवाह होता है तब इसे सूर्य स्वर या पिंगला नाड़ी स्वर कहते हैं | बायीं नासिका से जब वायु का प्रवाह होता है तब इसे चंद्र स्वर या इड़ा नाड़ी स्वर कहते हैं और जब दोनों नासिका से वायु का प्रवाह होता है तब इसे उभय स्वर या सुषुम्ना नाड़ी स्वर कहा जाता है |
- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा आने ही वाला है | चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक सांसों के आवागमन अर्थात संचार की गति से पूरा वर्ष कैसा बीतेगा इसका अनुमान लगा लिया जाता है | इन तीन दिनों में सूर्योदय के समय या कहें की बिछावन छोड़ने के समय चंद्र स्वर, इड़ा नाड़ी का चलना अनुकूल वर्ष का द्योतक है| स्वर की गति में अनियमितता व्यक्ति के रोग ग्रस्त होना दर्शाता है |
- 25 मार्च से शुक्ल प्रतिपदा है |
शुक्ल पक्ष में चंद्र स्वर (इड़ा स्वर) का कब चलना होता है आरोग्यकारी ??
शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी,चतुर्दशी,और पूर्णिमा को चंद्र स्वर का चलना आरोग्य दायक माना गया है| चंद्र स्वर, जिसे इड़ा स्वर भी कहा जाता है, इसको देवी स्वरुप माना जाता है, सत्व प्रवृत्ति और शीतल प्रकृति होता है इसका | अपनी इस प्रकृत्ति की वजह से यह गर्मी और पित्त जनित रोगों से रक्षा करने वाला होता है |
- शुक्ल पक्ष में सूर्य स्वर (पिंगला स्वर) का चलना कब होता है आरोग्यकारी ??
शुक्ल पक्ष में चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी, दशमी,एकादशी और द्वादशी को सूर्य स्वर का चलना आरोग्य दायक माना गया है | इस स्वर को शिव स्वरुप माना जाता है | उष्ण प्रकृत्ति होने की वजह से सर्दी और कफ जनित रोगों से मुक्ति देनेवाला होता है |
- कृष्णपक्ष में में चंद्र स्वर और सूर्य स्वर का कब चलना होता है आरोग्यकारी ??
शुक्लपक्ष में चल रहे स्वर की तिथि से ठीक उल्टा यहाँ क्रम हो जायेगा अर्थात चंद्र स्वर के लिए जो तिथियां निर्धारित की गयी हैं आरोग्य के लिए वे तिथियां सूर्य स्वर की हो जाएँगी और सूर्य स्वर वाली तिथियां चंद्र स्वर की हो जाएँगी |
स्वर का सही संचालन मनुष्य सीख जाये तो अनेकानेक बीमारियों को दूर भगा सकता है | अभ्यास करते करते स्वर का सहज ही सही प्रवाह होने लगता है |
काल के जिस खंड में हम सब खड़े हैं वहां सभी को स्वर साधने की जरूरत है | स्वर का प्रवाह सही हो रहा है कि नहीं यह जानने की जरूरत है | स्वरों की गति को सहज करने के लिए हमें धन खर्चने की जरूरत नहीं है | बस थोड़ा समय खर्चना है |
क्यों न चैत्र माह के इस नवरात्रि में हम सब स्वर ज्योतिष का सहारा लेकर शरीर, मन और बुद्धि को नियंत्रित करें और रोग, कलह को दूर करके जीवन को आनंदमय बनाएं |
आइये देवी माँ के चरणों में सहज रहकर, संकल्पित मन से ध्यान लगाएं और स्वर साधना प्रारम्भ करें |
” या देवी सर्वभूतेषु पुष्टि रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः “
@B Krishna Narayan
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