एक बंगला बने प्यारा ( ज्योतिष + वास्तु के सहयोग से )
( भाग – 1)
दिवाली के करीब आते ही भिन्न भिन्न समाचारपत्रों में बड़े बड़े भूमि विक्रेताओं और मकान निर्माताओं के लुभावने प्रचार आने शुरू हो जाते हैं |तरह तरह के ऑफर का प्रलोभन देते हैं ये सब . एक अपना मकान हो यह ख्वाहिश तो हर किसी की होती है |हर कोई चाहता है की अपना एक स्थाई ठौर हो जहाँ वह अपने परिवार के साथ सुख और चैन से रह सके |
आइये दिवाली से पहले दिए जा रहे लुभावने ऑफर के बीच जाने की भूमि और मकान की खरीद को लेकर ज्योतिष और वास्तु शास्त्र क्या सलाह देता है :-
अपनी कुंडली के चतुर्थ भाव ,चतुर्थ भाव के स्वामी और कारक चन्द्रमा को देखें .
अगर ये शुभ प्रभाव में हैं ,शुभ ग्रहों से युत /दृष्ट हैं तो प्रॉपर्टी को लेकर अच्छा योग है .
कारकांश लग्न पर या कारकांश लग्न से द्वितीय भाव पर यदि शुक्र की दृष्टि है तो भूमि ,मकान को लेकर बहुत ही अच्छा योग है .
कुंडली में अगर चतुर्थ भाव का सम्बन्ध यदि छठे भाव के स्वामी से बने या चतुर्थेश छठे भाव में हो तो क़र्ज़ लेकर भूमि और मकान खरीदने का योग होता है |
वास्तु के अनुसार भूमि खरीदने से पहले भूमि परिक्षण करना चाहिए |
जिस जमीन के खरीदारी की बात चले वहां की थोड़ी सी मिट्टी लेकर मुँह में डालें :-
अगर मीठा स्वाद है तो यह जमीन ब्राह्मणो के लिए उपयुक्त है ,
अगर कटु स्वाद है तो क्षत्रिय के लिए उपयुक्त है ,
अगर तिक्त स्वाद है तो वैश्य के लिए उपयुक्त है ,और
अगर कषाय स्वाद है तो शूद्र के लिए उपयुक्त है .
जिस भूमि में गृह निर्माण करना हो ,
उस भूमि में एक हाथ लम्बा ,चौड़ा और गहरा गड्ढा खोदकर पुनः उस जमीन को निकली गयी मिट्टी से भरें |यदि भरने के बाद भी मिट्टी बच जाये तो उत्तम फलदायी ,पूरी तरह भर जाये तो सम फलदायी और अगर काम पर जाये तो अशुभ फलदायी होती है |
भूमि में एक हाथ लम्बा ,चौड़ा और गहरा गड्ढा खोदकर सायंकाल उसे जल से भर दें .
सुबह में यदि जल शेष रहे तो उत्तम फलदायी ,कीचड़ रहे तो सम फलदायी और दरार पड़ी हुई हो तो वैसी भूमि वास के योग्य नहीं होती है |
गृह निर्माण करते वक़्त मुख्य द्वार बनाते वक़्त निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए .
पूर्व दिशा में ईशानकोण से अग्निकोण तक आठ भागों में बांटें और क्रम से बढ़ने में :-
पहला भाग – हानि ,दूसरा भाग -दरिद्रता ,तीसरा भाग -धनलाभ ,चौथा भाग -राज्य से लाभ ,पांचवां भाग -धन हानि ,छठा भाग -चोरी ,सातवां भाग -क्रोध एवं आठवां भाग -भय देने वाला होता है .
दक्षिण दिशा में अग्नि कोण से नैऋत्य कोण पर्यन्त आठ भागों में बांटें और क्रम से बढ़ने में ;-
पहला भाग -मृत्यु ,दूसरा भाग -बंधन ,तीसरा भाग – भय ,चौथा भाग – द्रव्य प्राप्ति ,पांचवां भाग – धन वृद्धि ,छठा भाग -आरोग्य ,सातवां भाग -व्याधि एवं आठवां भाग दरिद्रता देने वाला होता है |
पश्चिम दिशा में नैरऋत्य से वायव्य कोण पर्यन्त आठ भागों में बांटें और क्रम से बढ़ने से :-
पहला भाग – पुत्र हानि ,दूसरा भाग – शत्रुवृद्धि ,तीसरा भाग -लक्ष्मी प्राप्ति ,चौथा भाग -धन आगमन ,पांचवां भाग -सौभाग्य ,छठा भाग – दुर्भाग्य ,सातवां भाग -दुःख और आठवां भाग -शोक देने वाला होता है .
उत्तर दिशा में वायव्य कोण से ईशानकोण तक आठ भागों में बांटें और क्रम से बढ़ने पर :-
पहला भाग – कलत्र की हानि ,दूसरा भाग -दरिद्रता ,तीसरा भाग – हानि ,चौथा भाग -धान्यलाभ ,पांचवां भाग -धन , छठा भाग -संपत्ति की वृद्धि ,सातवां भाग -भय और आठवां भाग -रोग देने वाले होते हैं .
अगले भाग में हमलोग गृहनिर्माण से जुड़ी कुछ और महत्वपूर्ण बातों के साथ साथ वास्तु चक्र के बारे में ज्योतिष और वास्तु के माध्यम से जानेंगे .
@B Krishna Narayan
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