मानव जीवन ,ज्योतिष और भगवती कृपा
शक्ति आराधना का नौवां दिन .नवमी की अधिष्ठात्री स्वयं शक्ति स्वरूपा देवी माँ . काल रात्रि ,निशा रात्रि के गहन अंधकार से प्रकाश में लेकर आई हैं देवी माँ .प्रकाश मतलब अग्नि . शक्तिपुंज अग्नि .हमारे आपके हर एक के भीतर ही मौजूद है अग्नि . जरूरत है देवी कृपा से ,गुरु कृपा से उसको प्रकट करने का . रावण के पास थी अग्नि विद्या .नचिकेता को यमराज से प्राप्त हुई अग्नि विद्या .नचिकेता ,राजकुमार जिसके लिए संसार के सभी साधन सहज उपलब्ध थे .वह जब अपने पिता द्वारा मृत्यु ( यमराज ) को सौंप दिया जाता है तो वह बिलकुल भी अधीर या दुखी नहीं होता है बल्कि यमराज से संवाद करता है और यमराज द्वारा दिए गए हर प्रलोभन को ठुकरा कर उससे अग्नि विद्या सीखता है .इसे कहते हैं परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों अपनी निष्ठा और लगन से वहां से भी सर्वश्रेष्ठ हासिल करना .नचिकेता और यमराज का संवाद हर एक को जानना चाहिए . किसी भी वस्तु के रूप ,गुण और प्रकृति को भली भांति तभी समझा जा सकता है जब उसके बाह्य और अन्तर्निहित दोनों भाव को समझा जाये .शंकराचार्य ने शास्त्रार्थ में पूछे गए कुछ सवालों के जवाब तभी दे पाए जब उन्होंने परकाया प्रवेश किया .हमें भी वैसे ही हर शब्द ,हर वाक्य के भीतर प्रवेश करना पड़ेगा . आइये शक्ति आराधना के नौवें दिन कुछ शब्दों और वाक्यों के माध्यम से देवी का आवाहन करते हुए अपने भीतर की अग्नि को प्रज्ज्वलित करने की प्रार्थना करें ..
1 – ज्योतिष में ग्रहों की चर्चा होती है तो राहु /केतु को सर्प कहा जाता है .यहाँ जानने योग्य जो बात है वह यह की “सर्प” क्यों कहा गया इन्हे ? ब्रह्मा जी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे तब उनके बाल जो जमीन पर गिर गए उनसे सर्प की रचना हुई . वही सर्प वापस उनके सर पर आरूढ़ हो गए .यह गति सर्पण ( गति के विरुद्ध गति )कहलाती है, विरूद्ध गति में जाने के कारण .राहु ,केतु की गति अन्य ग्रहों की गति के विरूद्ध होने के कारण इन्हे सर्प कहा गया .
2 -.ज्योतिष में कहते हैं ” कुम्भ का सूर्य हृदय शूल देता है ” .
अब हृदय का कुम्भ राशि से क्या सम्बन्ध ??
कुम्भ = घड़ा .
तमाम तरह की अशुद्धियों से मुक्त घड़े का पानी शुद्ध एवं पीने योग्य होता है .
ह्रदय भी तो यही करता है .अशुद्ध रक्त को शुद्ध करके शरीर में भेजने का काम .तो कुम्भ और हृदय में सम्बन्ध स्थापित हो गया न .
3 -” मकर राशि वाले व्यक्ति गहन शोधकर्ता होते हैं ”
गहन शोध के लिए वृश्चिक राशि तो समझ में आती है पर मकर राशि ??
एक पौराणिक कथा के अनुसार मकरसुर नामक एक राक्षस भगवन विष्णु के हाथ से ग्रन्थ छीनकर गहरे समुद्र में चला गया .
गहरे उतरना यही तो है शोधकर्ता का एक लक्षण .यहाँ जुड़ गया न सम्बन्ध मकर राशि और गहन शोध के बीच .
4 -रामचरितमानस से
जयंत यह समझता था की वह इंद्र का बेटा है ,तो वह कुछ भी करेगा माफ़ कर दिया जाएगा .तब उसने वेश बनाया , मंदमति हुआ .
वेश बनाना = शुक्र
मंदमति = शनि
राम से विमुख ,
राम =सूर्य
राम से विमुख अर्थात न तो सूर्य के साथ हो न सूर्य से दृष्ट हो .
वन = सिंह राशि
कह सकते हैं कि सिंह राशि में शुक्र और शनि( सिंह राशि + शुक्र + शनि ),का योग हो और इस योग का सूर्य के साथ सम्बन्ध नहीं हो तो ऐसे योग में (” मातु मृत्यु पितु समन समाना .सुधा होइ विष सुनु हरिजाना .मित्र करइ सत रिपु कै करनी .ता कह बिबुध नदी वैतरणी “),माता भी मौत बन जाती है ,पिता भी यमराज बन जाता है और मित्र भी शत्रु बन जाते हैं .
इसी में तुलसीदास आगे लिखते हैं
” नारद देखा विकल जयंता …
लागी दया कोमल चित्त सांता ..”
नारद = बुध .
जयंत अपने असली रूप में आता है . राजकुमार है वह .
राजकुमार = बुध
ऊपर वर्णित योग में जब बुध का साथ हो याये या बुध से दृष्ट हो जाये तो स्थिति नियंत्रित हो जाये .
नव दिवसीय उत्सव के इस पर्व में देवी माँ का आवाहन और उनके आशीर्वाद की कामना .अपना आशीर्वाद बनाये रखें .ऊर्जा के प्रवाह को बनाये रखें .गति प्रदान करें . प्रकाश का वह पुंज ,अग्नि का वह भंडार जो अपने भीतर ही समाहित है उस भंडार की पहचान हो सके .अंधकार से प्रकाश की ओर लेकर चलें .परिवर्तन से रूपांतरण करते रहे .
” ज्वलः ज्वलः प्रज्ज्वलः प्रज्ज्वलः “.
” या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ”
@ B Krishna Narayan