दुर्गा पूजा
देवी उपासना
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
माँ के आने की खबर आ गयी है . इसी महीने के 29 तारीख को गज पर सवार होकर माँ आ रही हैं .गज ,(हाथी ) शक्ति और ऐश्वर्य का प्रतीक होता है .और उसपर सवार होकर माँ आ रही हैं अर्थात सुख और संपत्ति का आशीर्वाद लेकर आ रही हैं माँ . इसका आभास इस बात से भी हो रहा है की माँ के आने के दूसरे ही दिन अमृत सिद्धि योग बन रहा है .फिर से दो अक्टूबर को यह योग बनेगा . तीन और छह अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि योग बनेगा .मनोवांछित फल देने वाला होगा देवी का आगमन .
माँ का आना किसपर होगा , इसकी गणना ग्रह ,महीना और वार के योग से की जाती है .गणना के अनुसार ही इसबार देवी का गज पर सवार होकर आना निर्धारित किया गया है .
वैसे तो मनोवांछित फल प्रदायी होगा यह लेकिन साथ ही साथ यह प्राकृतिक आपदा की स्थिति भी बनाएगा .तेज बारिश और भूकंप की स्थिति बनेगी .
नवरात्र आते ही लोग यह पूछते हैं कि कैसे करें देवी का पूजन और कैसे दे आहुति ?? आईये जाने औपनिषदीय विधि .
कलश स्थापना –
29 सितंबर को दिन भर प्रतिपदा रहेगा इसकी वजह से कलश स्थापना के लिए भरपूर समय मिल सकेगा .
29 सितंबर – शैलपुत्री
30 सितंबर – ब्रह्मचारिणी
1 अक्टूबर – माँ चंद्रघंटा
2 अक्टूबर – माँ कुष्मांडा ,
3 अक्टूबर – माँ स्कंदमाता
4 अक्टूबर -कात्यायिनी
5 अक्टूबर – माँ कालरात्रि
6 अक्टूबर -माँ महागौरी
7 अक्टूबर – माँ सिद्धिदात्री कि अराधना करनी चाहिए
देवी पूजन –
देवी की अराधना भक्तों को सर्वदा अभीष्ट प्रदान करनेवाली तथा श्रेष्ठ है .पहले स्नान तथा आचमन करके इसके बाद आसान पर बैठकर न्यास करें .मंडल में देवी की पूजा करें . ॐ दुर्गायाः पदुकाभ्यां नमः ‘ माता दुर्गा को नमस्कार करके आवाहन करके देवी के आसन और मूर्ति को प्रणाम करना चाहिए .इसके बाद “ॐ ह्रीं दुर्गे रक्षिणीः ” इस मंत्र को ह्रदय में धारण करें फिर इसी मंत्र से रुद्रचण्डा ,प्रचण्डदुर्गा , चण्डोग्रा ,चाण्डानायिका ,चण्डा ,चंडवती ,चंडरुपा , चंडिका तथा दुर्गा इन नौ शक्तियों का पूजन करें .गौरी ,काली ,उमा ,दुर्गा ,भद्रा कांति,सरस्वती ,मंगला ,विषया ,लक्ष्मी ,शिव और नारायणी रूप में देवी का पूजन करें .दुर्गा देवी के अठारह हाथ हैं .उन हाथों में भय उत्पन्न करने वाली यष्टि ( खेटक ), घंटा ,दर्पण ,तर्जनी ,मुद्रा , धनुष ,ध्वज ,डमरू , परशु ,पाश ,शक्ति ,मुद्गर ,शूल कपल ,शरक ( बाण ) ,अंकुश ,वज्रा ,चक्र ,शलाका ये सभी सुशोभित होते हैं .
इनसे सुसज्जित अष्टादशभुजा देवी का स्मरण करना चाहिए .महिषासुर वध करनेवाली यह देवी सिंह पर विराजमान रहती है .
खेटक – यह देवी के हाथ में रहता है . देवी के अस्त्रों की पूजा में इसकी भी पूजा की जाती है .
“यष्टिरूपेण खेट तवंरिसंहारकारक
देविहस्तस्थितो नित्यं मम रक्षा कुरुष्व च ”
इस मंत्र का जाप करना चाहिए
आहुति –
नव शक्तियों के पूजन के बाद अग्नि प्रज्वलित करें .अग्नि का प्रज्ज्वलन ठीक प्रकार से होना चाहिए .किस प्रकार का प्रज्ज्वलन हो आहुति के लिए इसको बतलाता है मुण्डकोपनिषद का यह मंत्र –
“काली कराली च मनोजवा च
सुलोहिता या च सुधूम्रवर्ण
स्फुलिंगिनी विश्वरूचि च देवी
लेलायमाना इति सप्त जिह्वा ”
काले रंगोंवाली , अति उग्र ,मन की भांति अत्यंत चंचल ,सुन्दर लाली लिए हुए ,सुन्दर धुएं से रंगो वाली ,चिगारियोंवाली तथा विस्वरुचि देवी सब ओर से प्रकाशित और दैदीप्यमान ,इस प्रकार ये सात तरह की लपटें जब निकले तब आहुति डालनी चाहिए .कहने का तात्पर्य यह की जब भरपूर लपटें निकलने लगे तब आहुति देनी चाहिए .इस तरह की लपटों में जो भी आहुति साधक देता है अग्नि उसे सहर्ष स्वीकारती है और साधक को अथाह सुखों की प्राप्ति कराती है .
मुख्यतः शक्ति की अराधना का ,शक्ति की उपासना का समय है यह शारदीय नवरात्र .तो शक्ति की उपासना के साथ देवी से यह प्रार्थना –
” रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि “.